ग्रहण 2020 के इस पृष्ठ पर आपको सूर्य ग्रहण और चंद्र ग्रहण के बारे में विस्तृत जानकारी मिलेगी। यह जानकारी देने से पहले हम आपको बता दें कि, ग्रहण एक खगोलीय घटना है जिसमें दो ग्रहों के बीच में कोई अन्य ग्रह या पिंड आ जाता है। ग्रहण शब्द का उपयोग ज्यादातर सूर्य ग्रहण या चंद्र ग्रहण के साथ किया जाता है। आज इस पृष्ठ में हम आपको ग्रहण के बारे में विस्तृत जानकारी देंगे। हम आपको बताएंगे कि ग्रहण दोष से बचने के लिए आपको क्या उपाय करने चाहिए और ग्रहण के दौरान किस तरह की सावधानियां आपके द्वारा बरती जानी चाहिए। इसके साथ ही आपको साल 2020 में घटित होने वाले ग्रहणों के बारे में भी बताया जाएगा।
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मुख्य रुप से ग्रहण दो प्रकार के होते हैं, जिनके बारे में नीचे बताया गया है।
पूर्ण ग्रहण- ग्रहण की इस अवस्था में दो आकाशीय पिंडों के बीच में अस्थायी तौर पर कोई पिंड आ जाता है। यह अस्थायी पिंड किसी एक पिंड को पूरी तरह से ढक लेता है। उदाहरण के लिये यदि सूर्य और पृथ्वी के बीच में चंद्रमा आ जाए और चंद्रमा द्वारा सूर्य को पूरी तरह से ढक लिया जाए और सूर्य की किरणें पृथ्वी पर न पहुंच पाएं तो इसे पूर्ण सूर्य ग्रहण कहा जाता है।
आंशिक ग्रहण- ग्रहण की इस अवस्था में एक आकाशीय पिंड पूरी तरह से अवरुद्ध नहीं होता।
जब कभी सूर्य चंद्रमा और पृथ्वी एक सीधी रेखा में आ जाते हैं और चंद्रमा की छाया पृथ्वी पर पड़ती है तो इसे सूर्य ग्रहण कहा जाता है। बात स्पष्ट है कि जब भी सूर्य ग्रहण होता है तो चंद्रमा सूर्य और पृथ्वी के बीच में आ जाता है। अगर चंद्रमा सूर्य को पूरी तरह से ढक ले तो इसे पूर्ण सूर्य ग्रहण और आंशिक रुप से ढके तो इसे आंशिक सूर्य ग्रहण कहा जाता है। इसके अलावा यदि चंद्रमा सूर्य के केवल केंद्र भाग को ही ढके तो इसे वलयाकार सूर्य ग्रहण कहते हैं।
जिस तरह सूर्य ग्रहण के दौरान चंद्रमा सूर्य और पृथ्वी के बीच आ जाता है ठीक इसी तरह चंद्र ग्रहण पर पृथ्वी सूर्य और चंद्रमा के बीच आती है और पृथ्वी की छाया चंद्रमा पर पड़ती है। दिलचस्प बात यह है कि पूर्ण चंद्रग्रहण पर चंद्रमा पृथ्वी से लाल रंग का दिखाई देता है। इसका कारण यह है कि जब सूर्य का प्रकाश पृथ्वी से होकर चंद्र तक जाता है तो पृथ्वी पर मौजूद कण सिर्फ लाल रंग को आगे जाने देते हैं। बाकी रंग पृथ्वी के वायुमंडल में बिखर जाते हैं।
वर्ष 2020 में 4 चंद्रग्रहण और 2 सूर्यग्रहण घटित होंगे। इन ग्रहणों का प्रभाव हमारी जिंदगी पर भी पड़ेगा। तो आइये जानते हैं इस साल घटित होने वाले सूर्य और चंद्र ग्रहणों के बारे में।
इस साल जून महीने की 21 तारीख को सूर्य ग्रहण घटित होगा। सूर्य ग्रहण के दौरान चंद्रमा सर्य को पूर्ण रुप से न ढकते हुए केवल उसके केंद्रिय भाग को ही ढकेगा। अत: यह सूर्य ग्रहण वलयाकार होगा। इस सूर्य ग्रहण को भारत समेत, अफ्रीका, अमेरिका, उत्तरी अमेरिका, हिंद महासागर और प्रशांत महासागर के अधिकांश भागों से देखा जा सकता है। यह सूर्य ग्रहण भारतीय दृष्टिकोण से बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि इसे भारत से देखा जा सकता है। इसी वजह से ग्रहण का सूतक भी भारत में मान्य होगा।
पहला सूर्य ग्रहण 2020 | |||
दिनांक | सूर्य ग्रहण प्रारंभ | सूर्य ग्रहण समाप्त | ग्रहण का प्रकार |
21 जून | 09:15:58 बजे से | 15:04:01 बजे तक | वलयाकार |
साल 2020 के अंतिम माह यानि दिंसबर में दूसरा सूर्य ग्रहण घटित होगा। यह सूर्य ग्रहण 14-15 दिसंबर को होगा। इस सूर्य ग्रहण के दौरान चंद्रमा, सूर्य को पूरी तरह से ढक लेगा अर्थात यह पूर्ण सूर्य ग्रहण होगा। यह सूर्य ग्रहण अफ्रीका महाद्वीप के दक्षिणी भाग, प्रशांत महासागरीय क्षेत्र, हिंद महासागर से दिखाई देगा।
दूसरा सूर्य ग्रहण 2020 | |||
दिनांक | सूर्य ग्रहण प्रारंभ | सूर्य ग्रहण समाप्त | ग्रहण का प्रकार |
14-15 दिसंबर | 19:03:55 बजे से | 00:23:03 बजे तक | पूर्ण |
सूर्य ग्रहण 2020 के बारे में यहां विस्तार से जानें
साल 2020 में चार चंद्र ग्रहण हैं और खास बात यह है कि यह चारों ग्रहण ही उपच्छाया चंद्र ग्रहण होंगे। इन चंद्र ग्रहणों के दौरान चंद्रमा पृथ्वी की पेनुम्ब्रा (आधे भाग से) होकर गुजरता है। इस समय चंद्रमा पर सूर्य की जो रोशनी पड़ती है वो कटी हुई दिखाई देती है। नीचे हम साल 2020 में घटित होने वाले इन चारों चंद्र ग्रहणों के बारे में आपको जानकारी दे रहे हैं।
पहला चंद्र ग्रहण 2020 | |||
दिनांक | चंद्र ग्रहण प्रारंभ | चंद्र ग्रहण समाप्त | ग्रहण का प्रकार |
10-11 जनवरी | 22:37 बजे से | 02:42 बजे तक | उपच्छाया |
यूरोप, भारत, अफ्रीका, एशिया और ऑस्ट्रेलिया के कुछ भागों से देखे जा सकने वाला साल 2020 का पहला चंद्र ग्रहण 10 जनवरी 2020 को घटित होगा।
दूसरा चंद्र ग्रहण 2020 | |||
दिनांक | चंद्र ग्रहण प्रारंभ | चंद्र ग्रहण समाप्त | ग्रहण का प्रकार |
5-6 जून | 23:16 बजे से | 02:34 बजे तक | उपच्छाया |
साल 2020 का दूसरा चंद्र ग्रहण 5 जून को होगा। इस चंद्र ग्रहण को अफ्रीका के साथ-साथ भारत, यूरोप, एशिया और ऑस्ट्रेलिया के कुछ भागों से देखा जा सकता है।
तीसरा चंद्र ग्रहण 2020 | |||
दिनांक | चंद्र ग्रहण प्रारंभ | चंद्र ग्रहण समाप्त | ग्रहण का प्रकार |
5 जुलाई | 08:38 बजे से | 11:21 बजे तक | उपच्छाया |
साल का तीसरा चंद्र ग्रहण जुलाई के पहले हफ्ते में घटित होगा। यह चंद्र ग्रहण 8 बजकर 38 मिनट पर शुरु होगा और इसे दक्षिण पश्चिम यूरोप, अमेरिका और अफ्रीका के कुछ भागों से देखा जा सकता है।
चौथा चंद्र ग्रहण 2020 | |||
दिनांक | चंद्र ग्रहण प्रारंभ | चंद्र ग्रहण समाप्त | ग्रहण का प्रकार |
30 नवंबर | 13:04 बजे से | 17:22 बजे से | उपच्छाया |
साल 2020 का अंतिम चंद्र ग्रहण 30 नवंबर को घटित होगा। यह चंद्र ग्रहण ऑस्ट्रेलिया, एशिया, प्रशांत महासागर और अमेरिका के कुछ हिस्सों में दिखाई देगा।
चंद्र ग्रहण 2020 के बारे में यहां विस्तार से जानें
सूर्य और चंद्र ग्रहण जितने समय के लिये होता है उस समय काल को सूतक कहते हैं। इस समय काल में किसी भी शुभ काम को नहीं करना चाहिए। ऐसा माना जाता है कि इस दौरान किये जाने वाले शुभ कामों का फल भी नकारात्मक मिलता है। इस दौरान वैसे तो बहुत से कामों को करने की मनाही होती है लेकिन कुछ ऐसे काम भी हैं जिन्हें ग्रहण के दौरान करने से जीवन की नकारात्मकता दूर हो जाती है।
सूतक काल ग्रहण के दौरान के उस समय काल को कहते हैं जिसमें किसी काम को करने या न करने को कहा जाता है। इसलिए आपको यह अवश्य पता होना चाहिए कि सूतक कितने प्रहर का है। आपको बता दें कि एक सूर्योदय से दूसरे सूर्योदय तक के समय काल को आठ प्रहर में बांटा गया है। दिन के 24 घंटों को यदि आठ अलग-अलग भागों में बांटा जाए तो एक प्रहर 3 घंटे का होता है।
सूतक तभी मान्य होता है जब संबंधित जगह से ग्रहण जगह देखा जा सकता हो। अगर ग्रहण दृश्य न होतो सूतक काल भी नहीं माना जाता है। चंद्र ग्रहण के दौरान सूतक काल तीन प्रहर का होता है। चंद्र ग्रहण के दौरान सूतक काल ग्रहण के 9 घंटे पहले शुरु होता है औऱ यह सूतक चंद्र ग्रहण के बाद समाप्त हो जाता है। वहींं सूर्य ग्रहण चार प्रहर का होता है और सूतक सूर्य ग्रहण से ठीक पहले के 12 घंटों में पड़ता है। सूर्य ग्रहण के समाप्त होते ही सूतक काल भी समाप्त हो जाता है।
सूतक के समय गर्भवती महिलाओं को भगवान का ध्यान करना चाहिए। इससे उनके गर्भ में पल रहे नवजात को सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त होती है। इसके साथ ही ग्रहण के दौरान अशुद्ध जगहों पर जाने से भी गर्भवती महिलाओं को बचना चाहिए। ऐसा करने से नवजात पर राहु और केतु की नकारात्मक दृष्टि नहीं पड़ती है। सिलाई, कढ़ाई, बुनाई जैसे काम भी इस दौरान गर्भवती महिलाओं को नहीं करने चाहिए। ऐसी मान्यता है कि सूतक के दौरान जो स्त्रियां ये काम करती हैं उनके शिशु के अंगों को क्षति पहुंच सकती है। सूतक के दौरान संबंधित ग्रह के मंत्रों का जाप करने से गर्भवती महिलाओं को अच्छे फल प्राप्त होते हैं।
अगर आप सूतक के नकारात्मक प्रभावों से बचना चाहते हैं तो आपको निम्नलिखित मंत्रों का जाप सूतक के दौरान करना चाहिए।
सूर्य ग्रहण के दौरान जपें यह मंत्र | चंद्र ग्रहण के दौरान जपें यह मंत्र |
"ॐ आदित्याय विदमहे दिवाकराय धीमहि तन्न: सूर्य: प्रचोदयात" | “ॐ क्षीरपुत्राय विद्महे अमृत तत्वाय धीमहि तन्नो चन्द्रः प्रचोदयात्” |
ग्रहण को लेकर एक पौराणिक कथा का जिक्र किया जाता है। इस कथा के अनुसार राहु और केतु ग्रहण के समय सूर्य और चंद्रमा से अपनी शत्रुता का बदला लेते हैं। यह शत्रुता कैसे हुई इसके बारे मेें हम आपको बताते हैं। दरअसल जब देवताओं और असुरों ने मिलकर समुद्र मंथन किया तो उस मंथन के पश्चात समुद्र से 14 रत्न उत्पन्न हुए। इन रत्नों में एक रत्न अमृत भी था। अमृत को पीने वाला अमर हो सकता था और कोई उसे मार भी नहीं सकता था।
अमृत को गुणों को देखते हुए हर कोई उसका पान करना चाहता था। देवताओं ने अमृत पर अपना अधिकार जताया और असुरों ने अपना। अमृत को लेकर देवताओं और असुरों में द्वंद शुरु हो गया जिसमें अंत में असुरों की विजय हुई और वो अमृत का कलश लेकर देवताओं से दूर जाने लगे। असुर यदि अमृत का पान कर जाते तो पूरी सृष्टि में असंतुलन फैल सकता था इसलिए भगवान विष्णु ने मोहिनी नामक एक सुंदर अप्सरा का रुप धारण किया और अपने आकर्षक रुप से असुरों को अपने वश में कर लिया। मोहिनी रुप में भगवान विष्णु ने असुरों को इस शर्त पर राजी कर लिया कि अमृत पान दोनों दलों में बराबर होना चाहिए। इससे असुरों की समस्या का भी हल हो गया और वो इस शर्त को मान गए।
इसके बाद भगवान विष्णु मोहिनी रुप में अमृत को बांटने लगे। हालांकि वो देवताओं को अमृत जबकि असुरों को साधारण पेय दे रहे थे। इसी बीच चतुराई दिखाते हुए स्वरभानु नाम का एक राक्षस देवताओं के समुह में आ गया। जब अमृत का प्याला लेकर मोहिनी अवतार लिये हुए भगवान विष्णु उसके पास पहुंचे तो सूर्य और चंद्र देव ने उसे पहचान लिया। हालांकि तब तक राहु अमृत की कुछ बूंदें पी चुका था। भगवान विष्णु को जैसे ही सच्चाई का पता चला तो उन्होंने सुदर्शन चक्र से स्वरभानु का सिर काट दिया। लेकिन अमृत पान करने की वजह से स्वरभानु अमर हो चुका था। तब से स्वरभानु के सिर को राहु और धड़ को केतु के नाम से जाना जाता है। कहा जाता है कि इसी वजह से तब से राहु-केतु का बैर सूर्य और चंद्र देव से हो गया और इसी का बदला लेन के लिये वो सूर्य और चंद्र पर ग्रहण लगाते हैं।