हिन्दू धर्म और वैदिक ज्योतिष में ग्रहण का बड़ा महत्व है। क्योंकि ग्रहण का प्रभाव पृथ्वी पर उपस्थित सभी मनुष्यों पर होता है। हर साल पृथ्वी पर सूर्य और चंद्र ग्रहण घटित होते हैं। वर्ष 2018 में कुल 5 ग्रहण दिखाई देंगे। इनमें 3 सूर्य ग्रहण और 2 चंद्र ग्रहण होंगे। वहीं आधुनिक विज्ञान के अनुसार ग्रहण एक खगोलीय घटना है। जब किसी एक खगोलीय पिंड की छाया दूसरे पिंड पर पड़ती है, तो इस अवस्था को ग्रहण कहा जाता है। साल 2018 में होने वाले ये तीनों सूर्य ग्रहण आंशिक होंगे और भारत में नहीं दिखाई देंगे। हालांकि दुनिया के अन्य देशों में इनकी दृश्यता होगी। वहीं इस साल होने वाले दोनों चंद्र ग्रहण भारत समेत विश्व के कई देशों में दिखाई देंगे। ये दोनों पूर्ण चंद्र ग्रहण होंगे। हिन्दू धर्म में सूर्य और चंद्रमा का खास महत्व है। बिना सूर्य और चंद्रमा के पृथ्वी पर जीवन की कल्पना करना असंभव है। वैदिक ज्योतिष में सूर्य को पिता, पूर्वज और उच्च सेवा का कारक माना गया है। वहीं चंद्रमा को मां और मन का कारक कहा गया है। इस वजह से सूर्य और चंद्र ग्रहण का घटित होना मानव समुदाय के जीवन पर प्रभाव डालता है।
वर्ष 2018 में कुल 3 सूर्य ग्रहण होंगे। इनमें पहला सूर्य ग्रहण 16 फरवरी को, दूसरा सूर्य ग्रहण 13 जुलाई और तीसरा सूर्य ग्रहण 11 अगस्त को दिखाई देगा। हालांकि ये तीनों सूर्य ग्रहण भारत में दृश्यमान नहीं होंगे इसलिए भारत में इनका सूतक और धार्मिक कर्मकांड मान्य नहीं होगा। तीनों सूर्य ग्रहण का विवरण इस प्रकार है:
दिनांक | ग्रहण का समय |
15-16 फरवरी 2018 | 00:25:51 से सुबह 04:17:08 बजे तक |
13 जुलाई 2018 | प्रातः 07:18:23 बजे से 09:43:44 बजे तक |
11 अगस्त 2018 |
दोपहर 13:32:08 से शाम 17:00:40 तक |
नोट: यह सूर्य ग्रहण 15 और 16 फरवरी की मध्य रात्रि में घटित होगा और भारत में नहीं दिखाई देगा।
विस्तार से पढ़ें: वर्ष 2018 में होने वाले तीनों सूर्य ग्रहण की दृश्यता, प्रकार और समस्त राशियों पर होने वाला इसका प्रभाव।
वर्ष 2018 में 31 जनवरी को साल का पहला पूर्ण चंद्र ग्रहण घटित होगा जबकि दूसरा चंद्र ग्रहण 27-28 जुलाई की मध्य रात्रि में होगा। ये दोनों ग्रहण भारत में दृश्यमान होंगे, इसलिए इनका धार्मिक महत्व और सूतक भारत में मान्य होगा। साल 2018 में घटित होने वाले 2 चंद्र ग्रहण का विवरण इस प्रकार है:
दिनांक | ग्रहण का समय |
31 जनवरी 2018 | 17:57:56 से 20:41:10 बजे तक |
27-28 जुलाई 2018 | 23:56:26 से 03:48:59 बजे तक |
विस्तार से पढ़ें: वर्ष 2018 में होने वाले दोनों चंद्र ग्रहण की दृश्यता, प्रकार और समस्त राशियों पर होने वाला इसका प्रभाव।
हिंदू धर्म में जहां ग्रहण के महत्व को बताया गया है। वहीं ग्रहण से होने वाले दुष्प्रभावों का उल्लेख भी किया गया है। इसी वजह से ग्रहण के दौरान कुछ कार्यों को वर्जित माना गया है। इनमें किसी नए कार्य की शुरुआत करना, भोजन, भगवान का पूजन समेत कुछ कार्य करना निषेध है। ग्रहण शुरू होने से पूर्व सूतक लगने की वजह से इन कार्यों की मनाही होती है। दरअसल सूतक काल को अशुभ समय माना जाता है। सूर्य व चंद्र ग्रहण लगने से कुछ समय पहले सूतक काल प्रारंभ हो जाता है। ग्रहण की समाप्ति पर स्नान के बाद सूतक काल समाप्त हो जाता है। हालांकि बुजुर्ग, बच्चों और रोगियों पर ग्रहण का सूतक मान्य नहीं होता है अत: उन पर किसी तरह की बाध्यता नहीं होती है।
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हिन्दू धर्म से जुड़ी मान्यताओं के अनुसार गर्भवती महिलाओं पर ग्रहण का बुरा असर पड़ता है। इसलिए सूर्य और चंद्र ग्रहण के समय गर्भवती महिलाओं को कुछ विशेष सावधानी बरतने के निर्देश दिये जाते हैं। ग्रहण के समय गर्भवती महिलाओं को घर से बाहर निकलने और ग्रहण देखने से बचना चाहिए। वहीं गर्भवती महिलाओं को सिलाई, कढ़ाई, काटने और छीलने जैसे कार्य भी नहीं करना चाहिए। ऐसी मान्यता है कि ग्रहण के समय चाकू और सुई का उपयोग करने से गर्भ में पल रहे बच्चे के अंगों को क्षति पहुंच सकती है।
ग्रहण के समय ईश्वर की मूर्ति का स्पर्श और पूजन वर्जित है लेकिन ध्यान और मंत्र जाप का बड़ा महत्व है। ऐसे में सूर्य और चंद्र ग्रहण के समय निम्न मंत्रों का जाप करना चाहिए।
सूर्य ग्रहण के समय इस मंत्र का जाप करें
"ॐ आदित्याय विदमहे दिवाकराय धीमहि तन्नो सूर्य: प्रचोदयात् ”
चंद्र ग्रहण के समय इस मंत्र का जाप करें
“ॐ क्षीरपुत्राय विद्महे अमृत तत्वाय धीमहि तन्नो चन्द्रः प्रचोदयात् ”
हिन्दू धर्म से जुड़ी पौराणिक कथा के अनुसार ऐसा कहा जाता है कि समुद्र मंथन से उत्पन्न अमृत को दानवों ने देवताओं से छीन लिया। इस दौरान भगवान विष्णु ने मोहिनी नामक सुंदर कन्या का रूप धारण करके दानवों से अमृत ले लिया और उसे देवताओं में बांटने लगे, लेकिन भगवान विष्णु की इस चाल को राहु नामक असुर समझ गया और वह देव रूप धारण कर देवताओं के बीच बैठ गया। जैसे ही राहु ने अमृतपान किया, उसी समय सूर्य और चंद्रमा ने उसका भांडा फोड़ दिया। उसके बाद भगवान विष्णु ने सुदर्शन च्रक से राहु की गर्दन को उसके धड़ से अलग कर दिया। अमृत के प्रभाव से उसकी मृत्यु नहीं हुई इसलिए उसका सिर व धड़ राहु और केतु छायाग्रह के नाम से सौर मंडल में स्थापित हो गए। माना जाता है कि राहु और केतु इस बैर के कारण से सूर्य और चंद्रमा को ग्रहण के रूप में शापित करते हैं।
हिंदू धर्म में ग्रहण को मानव समुदाय के लिए हानिकारक माना गया है। जिस नक्षत्र और राशि में ग्रहण लगता है उससे जुड़े लोगों पर ग्रहण के नकारात्मक प्रभाव पड़ते हैं। हालांकि ग्रहण के दौरान मंत्र जाप व कुछ जरूरी सावधानी अपनाकर इसके दुष्प्रभावों से बचा जा सकता है।
सूर्य ग्रहण
जब चंद्रमा सूर्य एवं पृथ्वी के मध्य में आता है, तब यह पृथ्वी पर आने वाले सूर्य के प्रकाश को रोकता है और सूर्य में अपनी छाया बनाता है। इस खगोलीय घटना को सूर्य ग्रहण कहा जाता है।
चंद्र ग्रहण
जब पृथ्वी सूर्य एवं चंद्रमा के बीच आ जाती है तब यह चंद्रमा पर पड़ने वाली सूर्य की किरणों को रोकती है और उसमें अपनी छाया बनाती है। इस घटना को चंद्र ग्रहण कहा जाता है।
ग्रहण के प्रकार
उपच्छाया चंद्र ग्रहण: जब चंद्रमा पृथ्वी की उपच्छाया से होकर गुजरता है। इस समय चंद्रमा पर पड़ने वाली सूर्य की रोशनी अपूर्ण प्रतीत होती है। तब इस अवस्था को उपच्छाया चंद्र ग्रहण कहा जाता है।